Tuesday, January 28, 2014

प्रेम जिहाद(Love terrorism)

मुस्लिम यूथ फोरम’ नाम से मुस्लिम
शिक्षित
युवकों को लव जिहाद का खुलाआवाहन
शुरू हुआ है. इस
संदर्भ में निकले पत्रक bमेंहिंदू, सिक्ख, ईसाई
युवतियों को प्रयत्नपूर्वकप्रेमजाल में
खींचकर
उनका धर्मांतरण कराने का खुला आवाहन
किया गया है.
इसके लिए पुरस्कारों की राशि भी घोषित
की गई है.
पुरस्कारों की राशि :
हिंदू (ब्राह्मण लड़की) : ५ लाख
हिंदू (क्षत्रिय लड़की) : ४.५ लाख
हिंदू (दलित, खानाबदोश और अन्य
लड़कियॉं) : २ लाख
जैन लड़की : ३ लाख
गुजराती (ब्राह्मण लड़की) : ६लाख
गुजराती (कच्छी लड़की) : ३ लाख
पंजाबी (सिक्ख लड़की) : ७ लाख
पंजाबी (हिंदू लड़की) : ६ लाख
ईसाई (रोमन कॅथॉलिक लड़की) : ४ लाख
ईसाई (प्रोटेस्टंट लड़की) : ३लाख
बौद्ध लड़की : १.५ लाख(चित्र मे देखे)
संपर्क के लिए वेबसाईट :
ई मेल : love.jihad@yaho o.com,
salim786@gmail.com
संस्था : इस्लामिक इंटरनॅशनल स्कूल
०२२-२३७३६८७५, २३७३०६८९
जमात-उद-दावा:+९२५१२२५६१६१,
+ ९२३२१५२१३११९
व्यक्ती : जमशेद:+९२२१३५०१४०४४,
मोहम्मद चॉंद :
+९२४२३७१२०७१५,+
९२३००५२७७२३३, रेहान :
+९२४२३६६०५८१, हुसैन : +
९७१५५९९४६३७७/
३८९/९११/२२३/७८६
पत्ते : पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया
मुख्यालय : डेक्कन हाऊस, नं. ५, मेन १, ४
थी क्रॉस
एस. के. गार्डन, बेन्सन टाऊन पोस्ट,
बेंगळुरू-५६००४६
०८०-३२९५७५३४, फॅक्स :
०८०-२३४३०४३२
ई मेल : contact@popular front.org,
popularfrontmai
l@gmail.com
वेबसाईट : www.popularfron
tindia.org
१ ला मजला, नमीदशा कॉम्प्लेक्स,
कब्बनपेट, बेंगळुरू-५६० ००२
०८०-३२९८३६३९, ई मेल :
contactkfd@gmai l.org
३२/२३, ५ वा मजला, मॉडर्न टॉवर,
वेस्ट कॉट रोड, रोयापेट्टा,चेन्नई-६००
०१४
०४४-६४६११९६१, ई मेल :
in@popularfront india.org
युनिटी हाऊस, राजाजी रोड,
कोझिकोडे - ६७३००४
०४९५-२७२३४४३, ई मेल :
ndfkeralam@gmai l.com
जिज्ञासु अधिक जानकारी प्राप्त करें.
मामला गंभीर है.
क्या देश में की सुरक्षा व्यवस्था,
न्यायव्यवस्था,प्रशासन
आदि संस्था इसकी दखल लेगी? या हिंदू
समाज को ही कुछ
उपाय योजना करनी होगी?
सभी लडकियां ध्यान दे...तथा अपनी सहेलियों को भी बताइये
और लडको अपनी बहनों और जान की लडकियों को यह संदेश जल्द से जल्द
पहुंचाए...पहले शेयर करे बाद में पढ़े आपको इस पोस्ट पढने में सिर्फ 2-3
मिनट लगेंगे पर किसी की जिंदगी भी बाख सकती है....
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अगर एक मुसलमान दो हिंदू लड़कियों से शादी करके १२ बच्चे पैदा करे तो केवल २४ साल में मुस्लिम भारत पर कब्ज़ा कर लेंगे
|
हाल ही में पुलिस ने एक ऐसे ही युवक को पकड़ा है , इस युवक का नाम वसीम
अकरम है ,वह फेसबुक   दक्ष शर्मा के नाम से प्रोफाइल
बनाकर हिंदू युवतियों को फंसाता था ,फिर उनका शारीरिक शोषण करता था |
पुलिस ने अकरम को नजीराबाद से पकड़ा है |वसीम ने पूछताछ में बताया की लव जेहाद के नाम से ये सब कुछ चल रहा है , इससे जुड़े
कट्टरपंथी हिंदू लड़कियों को फंसाकर उनसे शादी कर लेते हैं , इसका मुख्या संगठन ढाका में है तथा हिंदुस्तान में इसका मुख्या संगठन केरल में है|
इस संगठन का मानना है की अगर एक मुस्लिम युवक एक हिंदू लड़की से शादी करके छः बच्चे पैदा करे तो हिंदुस्तान को इस्लामिक राष्ट्र
बनाने में ४० साल लगेंगे और अगर एक मुसलमान
दो हिंदू लड़कियों से शादी करके १२ बच्चे पैदा करे तो केवल २४ साल में मुस्लिमभारत पर कब्ज़ा कर लेंगे | वो कहते हैं की हिंदू
लड़कीसे शादी करने से एक तरफ हम हिंदू आबादी को बढ़ने
से रोकते हैं तो दूसरी तरफ मुस्लिम आबादी बढाते हैं |
अकरम ने बताया की मुल्ला मौलवी मुस्लिम
बोलीवुड सितारों से कहते हैं की वे कमसे कम दो हिंदू लड़कियों से शादी करे जिससे की देश में हिंदू लड़कियों में मुस्लिम लड़कों के
प्रति सहानुभूति बने ,वो भी सितारों की नक़ल करके मुस्लिम लड़कों के प्रेम जाल में आसानी से फंस जाएं |हिन्दुस्थान को "दारुल हरब" से "दारुल
इस्लाम" बनाने का जो इनका उद्देश्य है, ये उसी की एक कड़ी है। कुछ साल पहले
आप जानते हैं की केरल में इसके 2500 मामले सामने आये थे। जिसमे पकडे
गए आतंकवादियों ने इसके बारे में सब बताया था। और तहकीकात करने पर ये
सारे मामले सामने आये। लेकिन अब तो ये पूरे देश में फ़ैल चूका है।ये
इनका गजवा-ए-हिन्द(हिंदुस्तान पर फतह) का एक हिस्सा है,
जो इनकी (मुसलामानों की) किताबों में लिखा है।
की पाकिस्तान भविष्य में हिंदुस्तान पर फतह करेगा और पूरा हिंदुस्तान एक
मुस्लिम मुल्क होगा। आप "गजवा-ए-हिन्द" के बारे में नेट पर या यु-ट्यूब पर
सर्च कर सकते हैं। जिसमे खुद पाकिस्तानी बोल रहा है इस बारे मे|
विस्तार पूर्वक पढने के लिए क्लिक करे
https://www.dropbox.com/sh/v7ykn3xa1myxdfl/49GIqYIV_J/Love%20Jehad.pdf
इस्लाम ओर जिहाद के बारे मे जानने के लिए क्लिक करे
https://hindurashtra.wordpress.com/
YouTube http://m.youtube.com/watch?v=XqukseR2LpY&app=m
http://m.youtube.com/watch?v=5GKHLnlye1o&app=m

Saturday, January 25, 2014

प्राचीन भारत मे वैज्ञानिक आविष्कार(गर्म वायु के गुब्बारे ओर वस्त्र,डोर-तार-रज्जु,कृत्रिम अंग)Scientific inventions in ancient India(Hot air balloon and cloths and MULTI-CORE CABLE,Prosthesis)

मित्रो भारतीय विज्ञान के इस क्रम मे आज हम आपको भारतीय ग्रंथो मे वर्णित कुछ आविष्कार बताएंगे|
वास्तव मे विदेशी आक्रमणकारियो ओर मुख्यतः मुस्लिम आक्रमणकारियो द्वारा विश्व प्रसिध्द नालंदा ओर तकक्षीला विश्व विद्यालयो को जला देने के कारण कई दुर्लभ ग्रंथ नष्ट हो गए| लेकिन जितने हमारे पास उपलब्ध है उनमे कई ऐसी जानकारिया की लोग दातो तले उंगलिया दबा ले|
१ गर्म वायु के गुब्बारे-
मित्रो आप जानते ही हो कि प्राचीनकाल मे विमान विद्या थी| उसी प्रकार ऊचे उडनेवाले गुब्बारे और विमान से जिन छत्रो के सहायता से वैमानिक या सैनिक आकाश से छलांग लगा देते वे पैराशुट भी प्राचीन काल मे थे|
अगस्त्य संहिता मे इसका वर्णन है-
" जलनौकेव यानं यद्विमानं व्योम्निकीर्तितं|
कृमिकोषसमुदगतं कौषेयमिति कथ्यते|
सूक्ष्मासूक्ष्मौ मृदुस्थलै औतप्रोतो यथाक्रमम्||
वैतानत्वं च लघुता च कौषेयस्य गुणसंग्रहः|
कौशेयछत्रं कर्तव्यं सारणा कुचनात्मकम्|
छत्रं विमानाद्विगुणं आयामादौ प्रतिष्ठितम्||
उपरोक्त पंक्तियो मे कहा गया है कि विमान वायु पर उसी तरह चलता है जैसे जल मे नाव चलती है| तत्पश्चात् उन काव्य पंक्तियो मे गुब्बारो ओर आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र सुयोग्य कहा है क्युकि वह बडा लचीला होता है|
गुब्बारो के बाबत की काव्यपंक्तियो का एक नमूना नीचे उध्दृत है-
"वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनमस्तके|
उदानस्य लघुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम्||
यानि वस्त्र मे हाईड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश मे उडा जा सकता है|(उदान वायु=हाईड्रोजन)
वायुपुरण वस्त्र-
प्राचीनकाल मे ऐसा वस्त्र बनता था जिसमे वायु भरी जा सकती थी| उस वस्त्र को बनाने की निम्न विधि अगस्त्य संहिता मे है-
क्षीकद्रुमकदबाभ्रा भयाक्षत्वश्जलैस्त्रिभिः|
त्रिफलोदैस्ततस्तद्वत्पाषयुषैस्ततः स्ततः||
संयम्य शर्करासूक्तिचूर्ण मिश्रितवारिणां|
सुरसं कुट्टनं कृत्वा वासांसि स्त्रवयेत्सुधीः||
रेशमी वस्त्र को अंजीर ,कटहल,आंब,अक्ष,कदम्ब,मीराबोलेन वृक्ष के तीन प्रकार ओर दाले इनके रस या सत्व के लेप दिए जाते है| तत्पश्चात् सागर तट पर मिलनेवाले शंख आदि और शर्करा का घौल यानी द्रव सीरा बना कर वस्त्र को भिगौया जाता है| फिर उसे सुखाया जाता है| इसमे उदानवायु भर उडा जा सकता है|
डोर-तार-रज्जु=
मित्रो केबल से पहले हम आपको बताना चाहेगे कि वेदो के कई मंत्रो मे विद्युत के गुण धर्म है अतः वेद ही विद्युत शास्त्र का मूल है|वेदो मे धातुओ के तार बनाकर उनका उपयोग करने का उपदेश है-
युवं पैदवे पुरूवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरूतारं दुवस्यथः|
शर्यैरभिद्युं पृतनासु दुष्टरं चर्कत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्||ऋग्वेद अष्ट१|अ८|व२१|मं१०||
वह अत्यन्त शीघ्र गमनागमन का हेतु होता है अर्थात् इस तारविद्या से बहुत उत्तम व्यवहारो को मनुष्य लोग प्राप्त होते है| लडाई करने वाले सेनापतियो को यह तार विद्या अत्यंत लाभकारी है| वह तार शुध्द धातुओ का होना चाहिए| ओर विद्युत प्रकाश से युक्त करना चाहिए|सब सेनाओ के बीच जिससे दुःसह प्रकाश होता ओर उल्लंघन करना अशक्य है| जो सब क्रियाओ को बारंबार चलाने के योग्य है| अनैक प्रकार कलाओ के चलाने से अनेक उतम व्यवहारो को सिध्द करने के लिए विद्युत की उत्पत्ति करके उस को ताडन करना चाहिए| जो इस प्रकार ताराख्य यंत्र है,उस को सिध्द करके प्रीति से सेवन करो|
परम उत्तम व्यवहारो की सिध्दी के लिये तथा दुष्टो की पराजय के लिए तार विद्या सिध्द करनी चाहिए|जैसे समीप और दुरस्थ पदार्थ का प्रकाश सूर्य करता है वैसे तारयंत्र से भी दूर ओर समीप के सभी व्यवहारो का प्रकाश होता है | यह तार यंत्र अश्वि के गुणो ही से सिध्द होती है|
इस तरह तारो के गुण ओर उपयोग करने का उपदेश वेदो मे है|
अब डोर-तार-रज्जु के बारे मे बताते है,प्राचीन कारखाने,उडान,सन्देशप्रेषण आदि के लिए जो डोर तार रज्जु आदि लगते थे उनका उल्लेख प्राचीन विद्युत शास्त्र अगस्त्य संहिता मे इस प्रकार है-
नवभिस्तस्न्नुभिः सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः|
गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तैर्नवभिर्भवेत्|
नवाष्टसप्तषड् संख्ये रश्मिभिर्रज्जवः स्मृताः||
नौ तारो का सूत्र बनता है| नौ सुत्रो का एक गुण,नौ गुण का एक पाश ,नौ पाशो से एक रश्मि ओर ९,८,७ या ६ रज्जु रश्मि मिलाकर एक रज्जु बनती है| आधुनिक नौकाचलन ओर विद्युत वहन,संदेशवहन आदि के लिए जो अनैक बारीक तारो की बनी मोटी कैबल या डोर बनती है वैसी प्राचीनकाल मे भी बनती थी|शायद रज्जु से ही रोप(rope)ऐसा अपभ्रंश हुआ है|

कृत्रिम अंग-
चरित्रं हि पेरि वाच्छेदि परर्ण्यमाजा परितक्म्यायाम्|
सघो जड़्घा मायसी विश्वलायै धनेहिते सर्त्तवे
प्रत्यघत्तम्||rigved 1/116/15
युध्द मे या खेल के कारण बीमारी मे चलने
का साधन(पैर) निश्चय ही टूट जाए| तो है
चिकित्सको तत्काल भागने,भगाने के लिए युध्द मे या धन के लिये ,हित
साधन कार्य मे चलने के लिए लोहआदि धातुओ
की बनी जंघा फिर से लगा दे|
मित्रो इस मंत्र मे कृत्रिम अंग का उल्लेख है|
इन कुछ वस्तुओ के उल्लेख से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय विज्ञान काफी उच्च था इन वस्तुओ के अलावा ऐसे भी कई ओर आविष्कार हमारे ग्रंथो मे छिपे बैठे है|

Friday, January 24, 2014

गीता ओर महाभारत की कुछ महत्वपूर्ण ज्ञान( Significant knowledge of the Gita and Mahabharata)

पाँच पाण्डव तथा सौ कौरवों के नाम ये थे :–
पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर
2. भीम
3. अर्जुन
4. नकुल
5. सहदेव
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण
भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु
उनकी गिनती पांडवों में
नहीं की जाती है )
यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त
पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा ,
नकुल और सहदेव
की माता माद्री थी ।
वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के
सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन
2. दुःशासन
3. दुःसह
4. दुःशल
5. जलसंघ
6. सम
7. सह
8. विंद
9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष
11. सुबाहु
12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण
14. दुर्मुख
15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण
17. शल
18. सत्वान
19. सुलोचन
20. चित्र
21. उपचित्र
22. चित्राक्ष
23. चारुचित्र
24. शरासन
25. दुर्मद
26. दुर्विगाह
27. विवित्सु
28. विकटानन्द
29. ऊर्णनाभ
30. सुनाभ
31. नन्द
32. उपनन्द
33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा
35. सुवर्मा
36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु
38. महाबाहु
39. चित्रांग
40. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग
42. भीमबल
43. बालाकि
44. बलवर्धन
45. उग्रायुध
46. सुषेण
47. कुण्डधर
48. महोदर
49. चित्रायुध
50. निषंगी
51. पाशी
52. वृन्दारक
53. दृढ़वर्मा
54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति
56. अनूदर
57. दढ़संघ
58. जरासंघ
59. सत्यसंघ
60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा
62. उग्रसेन
63. सेनानी
64. दुष्पराजय
65. अपराजित
66. कुण्डशायी
67. विशालाक्ष
68. दुराधर
69. दृढ़हस्त
70. सुहस्त
71. वातवेग
72. सुवर्च
73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी
75. नागदत्त
76. उग्रशायी
77. कवचि
78. क्रथन
79. कुण्डी
80. भीमविक्र
81. धनुर्धर
82. वीरबाहु
83. अलोलुप
84. अभय
85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय
87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी
89. विरवि
90. चित्रकुण्डल
91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि
93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान
95. दीर्घबाहु
96. सुजात
97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी
99. विरज
100. युयुत्सु
( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहन
भी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )
" श्री मद्-भगवत गीता "
के बारे में-
किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए
और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने
के लिए।
कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत
व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से
व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन
जाता है।
गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें
मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
गीता की गिनती किन धर्म-
ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक
हिस्सा है।
गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

Thursday, January 23, 2014

कामसूत्र, ऋषि वात्स्यायन और विदेशी इस्लामिक दुष्प्रचार(Kama Sutra, the sage Vatsyayana And Foreign Islamic Disinformation)

इस पोस्ट को आप हमारे इस ब्लाग पर भी पढ सकते है

https://hindurashtra.wordpress.com/2013/02/14/553/
पोस्ट की महत्वपूर्णता देखते हुए इसे यहा पुनः प्रसारित किया जा रहे है
अक्सर मैंने कुछ लोगो विशेषत: मुसलमानों को ये कहते सुना है
की सनातन धर्म में कामसूत्र एक कलंक है और वे
बार बार कुछ पाखंडियो बाबाओ के साथ साथ कामसूत्र को लेकर सनातन
धर्म पर तरह तरह के अनर्लग आरोप व् आक्षेप लगाते रहते
है| चूँकि जब मैंने ऋषि वात्सयायन द्वारा रचित कामसूत्र
का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ की कामसूत्र
को लेकर जितना दुष्प्रचार हिन्दुओ ने किया है
उतना तो मुसलमानों और अंग्रेजो ने
भी नहीं किया | मुसलमान विद्वान व्
अंग्रेज इस बात पर शोर मचाते रहते है
की भारतीय संस्कृति में कामसूत्र के साथ
साथ अश्लीलता भरी हुई है और ऐसे में
वे खजुराहो और अलोरा अजन्ता की गुफाओं
की मूर्तियों, चित्रकारियो का हवाला दे कर भारत
संस्कृति के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार करते है|
आज मैं आप सभी के समक्ष उन
सभी तथ्यों को उजागर करूँगा जिसके अनुसार कामसूत्र
अश्लील न होकर एक जीवन पद्दति पर
आधारित है, ये भारतीय संस्कृति की उस
महानता को दर्शाता है जिसने पति पत्नी को कई
जन्मो तक एक ही बंधन में बाँधा जाता है और
नारी को उसके अधिकार के साथ धर्म-
पत्नी का दर्जा मिलता है, भारतीय
संस्कृति में काम को हेय की दृष्टि से न देख कर
जीवन के अभिन्न अंग के रूप में देखा गया है,
इसका अर्थ ये
नहीं की हमारी संस्कृति अश्लील
है, कामसूत्र में काम को इन्द्रियों द्वारा नियंत्रित करके भोगने
का साधन दर्शाया गया है, वास्तव में ये केवल एक दुष्प्रचार है
की कामसूत्र में अश्लीलता है और ये
विचारधारा तब और अधिक फैली जब कामसूत्र फिल्म
आई थी, जिसमे काम को एक वासना के रूप में दिखा कर न
केवल ऋषि वात्सयायन का अपमान किया गया था अपितु ऋषि वात्स्यायन
द्वारा रचित कामसूत्र के असली मापदंडो के
भी प्रतिकूल है, अब आगे लेख में आप पढेंगे
की ऐसा क्या है कामसूत्र में??
सौजन्य से – Saffron Hindurashtra
कौन थे महर्षि वात्स्यायन
महर्षि वात्स्यायन भारत के प्राचीनकालीन
महान दार्शनिक थे. इनके काल के विषय में इतिहासकार एकमत
नहीं हैं. अधिकृत प्रमाण के अभाव में
महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है. कुछ
स्थानों पर इनका जीवनकाल
ईसा की पहली शताब्दी से
पांचवीं शताब्दी के बीच
उल्लिखित है. वे ‘कामसूत्र’ और ‘न्यायसूत्रभाष्य’ नामक
कालजयी ग्रथों के रचयिता थे. महर्षि वात्स्यायन
का जन्म बिहार राज्य में हुआ था. उन्होंने कामसूत्र में न केवल
दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला,
शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्ठता प्रदान
की है. कामसूत्र’ का अधिकांश भाग मनोविज्ञान से
संबंधित है. यह जानकर अत्यंत आश्चर्य होता है कि आज से
दो हजार वर्ष से भी पहले
विचारकों को स्त्री और पुरुषों के मनोविज्ञान
का इतना सूक्ष्म ज्ञान था. इस जटिल विषय पर वात्स्यायन रचित
‘कामसूत्र’ बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ.
भारतीय संस्कृति में
कभी भी ‘काम’ को हेय
नहीं समझा गया. काम को ‘दुर्गुण’ या ‘दुर्भाव’ न
मानकर इन्हें चतुर्वर्ग अर्थ, काम, मोक्ष, धर्म में स्थान
दिया गया है. हमारे शास्त्रकारों ने जीवन के चार
पुरुषार्थ बताए हैं- ‘ धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’ और ‘मोक्ष’ . सरल
शब्दों में कहें, तो धर्मानुकूल आचरण करना, जीवन-
यापन के लिए उचित तरीके से धन कमाना, मर्यादित
रीति से काम का आनंद उठाना और अंतत:
जीवन के अनसुलझे गूढ़ प्रश्नों के हल
की तलाश करना. वासना से बचते हुए आनंददायक
तरीके से काम का आनंद उठाने के लिए कामसूत्र के उचित
ज्ञान की आवश्यकता होती है.
वात्स्यायन का कामसूत्र इस उद्देश्य की पूर्ति में
एकदम साबित होता है. ‘काम सुख’ से लोग वंचित न रह जाएं और
समाज में इसका ज्ञान ठीक तरीके से फैल
सके, इस उद्देश्य से प्राचीन काल में कई ग्रंथ लिखे
गए.
जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन
बहुत ही आवश्यक है. ऋषि-मुनियों ने
इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर
दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन
कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और
नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए.
या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार
को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन
बहुत ही आवश्यक है. ऋषि-मुनियों ने
इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर
दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन
कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और
नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए.
या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार
को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
मनुष्य को बचपन और यौवनावस्था में विद्या ग्रहण
करनी चाहिए. उसे यौवन में ही सांसारिक
सुख और वृद्वावस्था में धर्म व मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्न
करना चाहिए. अवस्था को पूरी तरह से निर्धारित
करना कठिन है, इसलिए मनुष्य ‘त्रिवर्ग’ का सेवन इच्छानुसार
भी कर सकता है. पर जब तक वह विद्याध्ययन करे,
तब तक उसे ब्रह्मचर्य रखना चाहिए यानी ‘काम’ से
बचना चाहिए.
कान द्वारा अनुकूल शब्द, त्वचा द्वारा अनूकूल स्पर्श, आंख
द्वारा अनुकूल रूप, नाक द्वारा अनुकूल गंध और जीभ
द्वारा अनुकूल रस का ग्रहण किया जाना ‘काम’ है. कान
आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन और
आत्मा का भी संयोग आवश्यक है.
स्पर्श विशेष के विषय में यह निश्चित है कि स्पर्श के
द्वारा प्राप्त होने वाला विशेष आनंद ‘काम’ है.
यही काम का प्रधान रूप है. कुछ आचार्यों का मत है
कि कामभावना पशु-पक्षियों में भी स्वयं प्रवृत्त
होती है और नित्य है, इसलिए काम
की शिक्षा के लिए ग्रंथ की रचना व्यर्थ
है. दूसरी ओर वात्स्यायन का मानना है
कि चूंकि स्त्री-पुरुषों का जीवन पशु-
पक्षियों से भिन्न है. इनके समागम में भी भिन्नता है,
इसलिए मनुष्यों को शिक्षा के उपाय की आवश्यकता है.
इसका ज्ञान कामसूत्र से ही संभव है. पशु-
पक्षियों की मादाएं खुली और स्वतंत्र
रहती हैं और वे ऋतुकाल में केवल स्वाभाविक
प्रवृत्ति से समागम करती हैं.
इनकी क्रियाएं बिना सोचे-विचारे होती हैं,
इसलिए इन्हें
किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती.
वात्स्यायन का मत है कि मनुष्य को काम का सेवन करना चाहिए,
क्योंकि कामसुख मानव शरीर की रक्षा के
लिए आहार के समान है. काम ही धर्म और अर्थ से
उत्पन्न होने वाला फल है. हां, इतना अवश्य है कि काम के
दोषों को जानकर उनसे अलग रहना चाहिए| कुछ आचार्यों का मत है
कि स्त्रियों को कामसूत्र की शिक्षा देना व्यर्थ है,
क्योंकि उन्हें शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं है.
इसके विपरीत वात्स्यायन का मत है
कि स्त्रियों को इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए,
क्योंकि इस ज्ञान का प्रयोग स्त्रियों के बिना संभव
नहीं है.
आचार्य घोटकमुख का मत है कि पुरुष
को ऐसी युवती से विवाह करना चाहिए,
जिसे पाकर वह स्वयं को धन्य मान सके तथा जिससे विवाह करने
पर मित्रगण उसकी निंदा न कर सकें. वात्स्यायन लिखते
हैं कि मनुष्य की आयु सौ वर्ष की है.
उसे जीवन के विभिन्न भागों में धर्म, अर्थ और काम
का सेवन करना चाहिए. ये ‘त्रिवर्ग’ परस्पर संबंधित होना चाहिए
और इनमें विरोध नहीं होना चाहिए.
कामशास्त्र पर वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ के अतिरिक्त ‘नागर
सर्वस्व’, ‘पंचसायक’, ‘रतिकेलि कुतूहल’, ‘रतिमंजरी’,
‘रतिरहस्य’ आदि ग्रंथ भी अपने उद्देश्य में
काफी सफल रहे.
वात्स्यायन रचित ‘कामसूत्र’ में अच्छे लक्षण वाले
स्त्री-पुरुष, सोलह श्रृंगार, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय,
कामशक्ति में वृद्धि से संबंधित उपायों पर विस्तार से
चर्चा की गई है.
इस ग्रंथ में स्त्री-पुरुष के ‘मिलन’
की शास्त्रोक्त रीतियां बताई गई हैं. किन-
किन अवसरों पर संबंध बनाना अनुकूल रहता है और किन-किन
मौकों पर निषिद्ध, इन बातों को पुस्तक में विस्तार से बताया गया है.
भारतीय विचारकों ने ‘काम’ को धार्मिक मान्यता प्रदान
करते हुए विवाह को ‘धार्मिक संस्कार’ और
पत्नी को ‘धर्मपत्नी’ स्वीकार
किया है. प्राचीन साहित्य में कामशास्त्र पर बहुत-
सी पुस्तकें उपलब्ध हैं. इनमें अनंगरंग, कंदर्प,
चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्व, पंचसायक,
रतिकेलि कुतूहल, रतिमंजरी, रहिरहस्य, रतिरत्न
प्रदीपिका, स्मरदीपिका,
श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख हैं.
पूर्ववर्ती आचार्यों के रूप में नंदी,
औद्दालकि, श्वेतकेतु, बाभ्रव्य, दत्तक, चारायण, सुवर्णनाभ,
घोटकमुख, गोनर्दीय, गोणिकापुत्र और कुचुमार
का उल्लेख मिलता है. इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं
कि कामशास्त्र पर विद्वानों, विचारकों और ऋषियों का ध्यान बहुत
पहले से ही जा चुका था.
वात्स्यायन ने ब्रह्मचर्य और परम समाधि का सहारा लेकर
कामसूत्र की रचना गृहस्थ जीवन के
निर्वाह के लिए की की .
इसकी रचना वासना को उत्तेजित करने के लिए
नहीं की गई है. संसार
की लगभग हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद
हो चुका है. इसके अनेक भाष्य और संस्करण
भी प्रकाशित हो चुके हैं. वैसे इस ग्रन्थ के
जयमंगला भाष्य को ही प्रमाणिक माना गया है.
कामशास्त्र का तत्व जानने वाला व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम
की रक्षा करता हुआ अपनी लौकिक
स्थिति सुदृढ़ करता है. साथ ही ऐसा मनुष्य जितेंद्रिय
भी बनता है. कामशास्त्र का कुशल ज्ञाता धर्म और
अर्थ का अवलोकन करता हुआ इस शास्त्र का प्रयोग करता है.
ऐसे लोग अधिक वासना धारण करने वाले कामी पुरुष के
रूप में नहीं जाने जाते.
वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन
का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य
को भी श्रेष्ठता प्रदान की है.
राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के
क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है.
करीब दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद् सर रिचर्ड एफ़
बर्टन ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया. अरब
के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ पर भी इस
ग्रन्थ की छाप है. राजस्थान की दुर्लभ
यौन चित्रकारी के अतिरिक्त खजुराहो, कोणार्क
आदि की शिल्पकला भी कामसूत्र से
ही प्रेरित है.
एक ओर रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र
की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत
की हैं. दूसरी ओर गीत-
गोविन्द के रचयिता जयदेव ने
अपनी रचना ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र
का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया है.
कामसूत्र के अनुसार -
स्त्री को कठोर शब्दों का उच्चारण,
टेढ़ी नजर से देखना, दूसरी ओर मुंह
करके बात करना, घर के दरवाजे पर खड़े रहना, द्वार पर खड़े
होकर इधर-उधर देखना, घर के बगीचे में जाकर
किसी के साथ बात करना और एकांत में अधिक देर तक
ठहरना त्याग देना चाहिए.
स्त्री को चाहिए कि वह पति को आकर्षित करने के
लिए बहुत से भूषणों वाला, तरह-तरह के फूलों और सुगंधित
पदार्थों से युक्त, चंदन आदि के विभिन्न अनूलेपनों वाला और
उज्ज्वल वस्त्र धारण करे.
स्त्री को अपने धन और पति की गुप्त
मंत्रणा के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए.
पत्नी को वर्षभर की आय
की गणना करके उसी के अनुसार व्यय
करना चाहिए.
स्त्री को चाहिए कि वह सास-ससुर
की सेवा करे और उनके वश में रहे.
उनकी बातों का उत्तर न दे. उनके सामने
बोलना ही पड़े, तो थोड़ा और मधुर बोले और उनके पास
जोर से न हंसे. स्त्री को पति और परिवार के सेवकों के
प्रति उदारता और कोमलता का व्यवहार करना चाहिए.
स्त्री और पुरुष में ये गुण होने चाहिए- प्रतिभा,
चरित्र, उत्तम व्यवहार, सरलता, कृतज्ञता,
दीर्घदृष्टि, दूरदर्शी. प्रतिज्ञा पालन, देश
और काल का ज्ञान, नागरिकता, अदैन्य न मांगना, अधिक न हंसना,
चुगली न करना, निंदा न करना, क्रोध न करना, अलोभ,
आदरणीयों का आदर करना, चंचलता का अभाव, पहले न
बोलना, कामशास्त्र में कौशल, कामशास्त्र से संबंधित क्रियाओं, नृत्य-
गीत आदि में कुशलता. इन गुणों के विपरीत
दशा का होना दोष है.
ऐसे पुरुष यदि ज्ञानी भी हों,
तो भी समागम के योग्य नहीं हैं- क्षय
रोग से ग्रस्त, अपनी पत्नी से अधिक
प्रेम करने वाला, कठोर शब्द बोलने वाला, कंजूस, निर्दय, गुरुजनों से
परित्यक्त, चोर, दंभी, धन के लोभ से शत्रुओं तक से
मिल जाने वाला, अधिक लज्जाशील.
वात्स्यायन ने पुरुषों के रूप को भी निखारने के उपाय बताए
हैं. उनका मानना है कि रूप, गुण, युवावस्था, और दान आदि में धन
का त्याग पुरुष को सुंदर बना देता है. तगर, कूठ और
तालीस पत्र को पीसकर बनाया हुआ
उबटन लगाना पुरुष को सुंदर बना देता है. पुनर्नवा,
सहदेवी, सारिवा, कुरंटक और कमल के पत्तों से
बनाया हुआ तेल आंख में लगाने से पुरुष रूपवान बन जाता है.
आधुनिक जीवनशैली और
बढ़ती यौन-स्वच्छंदता ने समाज को कुछ भयंकर
बीमारियों की सौगात दी है.
एड्स
भी ऐसी ही बीमारियों में
से एक है. अगर लोगों को कामशास्त्र का उचित ज्ञान हो, तो इस
तरह की बीमारियों से बचना एकदम मुमकिन
है.